थोड़ा रहम कर
थोड़ा रहम कर
दिहाड़ी लगाते हैं
तब रोटी खाते हैं
ओ मेरे दाता
तू उन पर रहम कर
थोड़ी तो
अपनी भी
आँखों को नम कर
रौद्र रूप
दिखला दे
जहां पर जरूरत हो
प्यासे के
होठों की
आशाएं पूरत हो
रहने दे यहां छोड़
मत बरस जमकर
ओ मेरे दाता
तू उन पर रहम कर
न रहने का
ठिकाना है
नित कमाना खाना है
जठर में
सुलगती आग को
बुझाना है
चिलमची नहीं रहते
झूठे भरम पर
ओ मेरे दाता
तू उन पर रहम कर
मिलता तिरस्कार
झोली भर
फटकार
झूठ-मूठ भी लोग
करते नहीं
प्यार
फलते रहें फिर भी
कर्मठ करम पर
ओ मेरे दाता
तू उन पर रहम कर