शीर्षक देखकर सिहर उठती हूँ
शीर्षक देखकर सिहर उठती हूँ
देख कर सिहर उठती हूं मैं
लड़कियों का इस तरह बेवकूफ बनना।
प्रेम जाल में फंस कर लव जिहाद का शिकार बनना
कभी टुकड़ों में कटकर जंगलों में बिखरना
कभी कुकर में पककर कुत्तों के सामने डलना
प्रेम का इतना क्रूर और वीभत्स अंजाम देख कर सिहर उठती हूं मैं।
जिंदगी भर की कमाई का आभासी माध्यम से अनजाने में लुट जाना।
मानव अंगों का चिकित्सक देव के हाथों अनजाने में बिक जाना।
मानव तस्करी का प्रलोभन में फँस जबर्दस्ती शिकार बन जाना।
मोबाइल गेम खेलते खेलते बच्चों का शिकंजे में फंस जाना।
बच्चों के माता-पिता को असहाय स्थिति में देखकर सिहर उठती हूं मैं।
मानव मस्तिष्क में घर कर धर
्म परिवर्तन के लिए उकसाना
प्रलोभन के तिनके में फंस कर लड़कियों का गुम हो जाना।
गंदी राजनीति कर दुष्ट नेताओं का स्वार्थ सिद्ध कर जाना।
आरक्षण का आवरण ओढ़ अयोग्य को योग्य घोषित कर जाना।
दुनिया में शोषण के विभिन्न तरीके देखकर सिहर उठती हूं मैं।
मोबाइल व इंटरनेट द्वारा कामुक वहशी व हिंसक दृश्यों का परोसा जाना।
कुचक्र में फंस कर खून के रिश्तो का भी एक दिन दुश्मन बन जाना।
खाने पीने की वस्तुओं व दवाइयों में मिलावट रूपी जहर का घुल जाना।
पथभ्रष्ट धर्म गुरुओं द्वारा शिष्यों को मति भ्रमित कर जाना।
समाज में व्याप्त अंधविश्वास भ्रष्टाचार अनाचार देखकर सिहर उठती हूं मैं।