वीर है बुजदिल नही हम
वीर है बुजदिल नही हम
आखिर कहो कब तक डरें हम
जुल्म यह कब तक सहें हम
वीर हैं बुजदिल नहीं हम ।
आतंक की लहरें हमारे द्वार तक आ गई ।
धर्म की आंधी बनी और धर्म पर ही छा गई ।
आखिर कहो क्यों चुप रहे हम शांति के पोषक बने
हम क्यों नहीं ढाये सितम हम वीर है बुजदिल नहींं हम ।
आतंक के कंधे पर रखकर वार वो करते रहे ।
कुछ नहीं हम जानते यह झूठ वो कहते रहे।
छिप कर हम पर घात करते
क्यों न हम प्रतिघात करते वीर है बुजदिल नहींं हम ।
भारत कभी न चाहता था भाइयो में युद्ध हो।
एक जान का बैरी बने तो दूजा क्यो न क्रुद्ध हो।
हाथी अगर पागल हो जाये दूसरो पर कहर ढाये ।
क्यों न फिर वह मौत पाये
वीर हैं बुजदिल नहीं हम ।