न इति न इति, चरैवेति चरैवेति
न इति न इति, चरैवेति चरैवेति
रुकता नहीं है समय,
कभी किसी के लिए।
रुकती नहीं है रात,
दिन के ढलने के लिए।
रुकता है कहां सूर्य,
चंद्रोदय के लिए।
रुकते हो तुम मानव,
किसके लिए ?
जीवन मिला है,
सिर्फ चलने के लिए।
इसलिए,
चलते रहो तुम,
क्योंकि,
हे पथिक,
न इति न इति
चरैवेति चरैवेति।
ना आदि है ना अंत है,
यह संसार अनन्त है।
रुकता नहीं है,
यह क्षणभंगुर संसार।
चलता है रहता है,
यह निर्भीक लगातार।
रुका है क्यों,
हे यात्री !
चलते रहो सतत्।
क्योंकि,
हे पथिक,
न इति न इति,
चरैवेति चरैवेति।
