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Ravi k.Pandit

Inspirational

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Ravi k.Pandit

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अनन्त काल से

अनन्त काल से

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होनें दो बारिश 

खोल दो खिड़कियां

वो दरवाजे जो बंद है

कई सदियों से

वो आँगन जहाँ बैठा नही है


कोई काफी समय से

ताकि आ सके वो तेज हवा

वो बूँद 

जो पड़ी नही है कई दिनों से 

तुम पर मुझ पर 

ये बूँद उकेरेगी हमारे


ह्रदय की परत को 

जो जम चूंकि हैं

अनन्त काल से

ओर दिखायेगी

नया चेहरा 

फुट पड़ेंगी नई कोपलें

ओर बह चुका होगा

जो तुम्हारे भीतर छुपा था।।


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