सत्य की तलाश में
सत्य की तलाश में
निकलता हूँ रोज़
एक ख्वाहिश लिए
सत्य की खोज में
मैं उसकी तलाश में
मेरे सामने चारों तरफ समुद्र है
डूबता हूँ रोज़ उसमें
मिलने की तलाश में
देखता है जब वो
पग-पथ पर चलते हुए
मनुष्य को
ढूंढता है मंजिल
जीने की आस में
हर एक रास्ता सुनाता है
उसकी दास्तान भयभीत मन लिये
छू लूंगा एक दिन उस अंबर को
बिना पंख लिए
जो बिछड गये इस पथ पर
ढूंढ़ लूंगा उन्हें सत्य की खोज की तलाश में
कुछ नये साथी होंगे कुछ पुराने
कुछ हमसफ़र समेटे लूंगा
अपनी बाहों मैं
अर्थियों पर होकर गुजरेगा जब
मेरा जनाजा
पहूँँचकर अपनी मंजिल पर
राख बन कर फिर चलूंगा
लिपट कर तुमसे
उड़ते हूँए निकलूंगा
सत्य की तलाश में।