सारा संसार है बसता
सारा संसार है बसता
मैंने सुना है लोगों को अक्सर कहते हुए
घुमक्कड़ परवर्ती का हैं
जहां-तहां फकीरों सा व्यस्त
है
छोटे कदमों के साथ
झरनों से बहता
समाहित हैं उसमें
दूर नील गगन
पैर में फफोले हैं
चट्टानों से बने
अडिग है पहाड़ सा
समुद्र सा गहरा
आँखों में सूरज की
चमक
लालायित, प्रेरित करती
एक
जज्बा
मुस्कुरा कर है
बोलता
दूर गिरता झरना
सा
शांत रात में
नदी की कल कल
लगता
मानो
मेरे प्रिय बाबूजी मैं
सारा संसार हैं बसता।।
