हर इंसान का।
हर इंसान का।
हर इंसान का एक सहारा बस उसका ही रब होता है।
उम्मीदे दुआ पाने को अपनी बस उसका ही दर होता है।।1।।
दिन तो कट जाता है सबका शहर की इन गलियों में।
पर रात ठहरने को तो बस अच्छा अपना ही घर होता है।।2।।
गुरबत पर हंसना किसी के होती अच्छी बात नहीं।
हर किस्मत बदलने को काफी बस लम्हा ही भर होता है।।3।।
ये आलीशान बंगले कोठी कुछ ना तेरा मुकाम होगा।
मरने पर सबका दो गज जमीन का टुकड़ा ही घर होता है।।4।।
मत इतराओ शानों शौकत पर क्या तुमको पता नहीं।
डूबने को कश्ती को काफी सुराख का कतरा ही भर होता है।।5।।
देखा जो बुजुर्गों को दूर शहर के उस यतीम खानें में।
तो समझ में आया अपनों का हर रिश्ता ही बेमतलब होता है।।6।।
