ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िन्दगी के तजुर्बे को
कुछ अफ़सानो मैं बताना था
बहोत कुछ समझना था
और कुछ समझाना था
मेरे ख्वाबों की
ताबीर कुछ अलग थी
तवक़्क़ो मेरी खुदा से थी
गरीबी के क़फ़स मैं,
उलझे हुए हैं हम अभी।
दिल अफ़सुर्दा था
एहसास-ए-नदामत
के गिरफ्त मैं था
ज़िन्दगी के इन
तल्ख़ लम्हों को
खुदा की इनायत
समझूँ या खामयाज़ा
तलाश थी बस इतनी
मेरे हुनर को पहचान मिले
मक़सद सिर्फ इतना था
औरों को खुशियों
का इनाम मिले
तस्सवुर किया था मैंने
उस मुकाम पे पहुँच सकूँ
किसी का दर्द बाँट सकूँ
किसी के काबिल बन सकूँ
किसी का दर्द बाँट सकूँ
किसी के काबिल बन सकूँ
आज यहॉं खड़ा हूँ
शुक्रिया तुम्हारा ए खुदा
मेरी मंज़िल मुझे बताने का
शुक्रिया तुम्हारा ए खुदा।
