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Anita Sharma

Inspirational

5.0  

Anita Sharma

Inspirational

जीवन_ही_मोक्ष

जीवन_ही_मोक्ष

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मोक्ष तो सहज ही स्वयं को पाना,

पाया बस वही जिसने यथार्थ को माना,

मृत्यु से मोक्ष किसको,कब मिल पाया है,

गर मिला है कुछ तो अनचाही क्षणिक तृप्ति!


क्या है मोक्ष महज बंधनो से मिली मुक्ति,

या उद्दिग्न विचाराधीन भावाभिव्यक्ति,

क्या है ईश्वर पाने की...कोई माया,

या जीव की मोहमाया प्रति आसक्ति!


क्यूंकि निरंतर कर्मफल कुचक्र है रच रहा,

ऐसे में व्यर्थ होगी प्रार्थना,अनर्थ है भक्ति,

कि कर्मों का लेखा जोखा हम सबका,

जन्म जन्मांतर यूँ ही है लिखा जाना;


बीतेगा जीवन बीतेंगी कई अवस्थायें,

भागता वक़्त हर क्षण पकड़ रहा गति,

क्या मोक्ष की अभिलाषा करनी है,

क्या कर्तव्यबोध ही दिलाएगा मुक्ति;


जीवित रहते दुःखों के साये तले,

उल्लास आनंद के भाव जो जगा लें,

मरकर मोक्ष की अनुभूति क्या करनी,

जब पा सकते हो...जीते जी सद्गति;


देह त्याग की कोई आवश्यकता नहीं,

किसी को ना मिल पाएगी ऐसे प्रभु भक्ति,

तजकर दुर्व्यसन,काम,क्रोध,लोभ,मोह,छल,

पायेंगे प्रभुत्व और दृढ़ आत्मिक शक्ति;


जीवन...प्राणी का सफल कहलाये,

जीवित पा लें आत्यन्तिक दुःख निवृत्ति,

कामनाओं पर जब विराम लग जाए,

ना हो मतिभ्रम न हो कभी भ्रष्ट स्मृति;


मोक्ष तो सहज ही स्वयं को पाना,

पाया बस वही जिसने यथार्थ को माना;

क्यूंकि मृत्यु से कैवल्य कौन पा सका,

गर पाया कुछ तो...आडम्बरों से मुक्ति।


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