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Anita Sharma

Classics

4  

Anita Sharma

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श्रृंगार तेरी प्रीत का

श्रृंगार तेरी प्रीत का

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मैं निस्तेज काया तेरी छुअन की आस में,

उड़ता लहराता रेशम हो जाती हूँ।


कभी झर झर बूंदों सी शीतल होती,

कभी सोंधी मिट्टी का इत्र लगाती हूँ।


चुनती हूँ तेरी यादों के पुष्प,

इश्क़ का गजरा बुनकर केशों को सजाती हूँ।


हरियाली छा जाती एहसासों की,

जब जब तेरे आने की उम्मीद जगाती हूँ।


स्मरण मात्र स्पंदन हो उठता,

उस नेह की वीणा ह्रदय में जब बजाती हूँ।


वो मंथर सा उन्माद तेरे मूक प्रेम का,

सुन सुरमयी कोयल सी मल्हार गाती हूँ।


श्रृंगार कर तेरी नशीली खामोशी का,

मैं नील गगन सी चहुँ ओर छा जाती हूँ।


तुझ में ही जलती बुझती...तेरी धुन में रमी,

उस रूहानी प्रीत का चिराग जलाती हूँ।


थाम कर तेरे प्रीत की सतरंगी चुनर,

मैं हर मौसम जीवन में बसंत खिलाती हूँ।


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