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Dr Jogender Singh(jogi)

Classics

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Dr Jogender Singh(jogi)

Classics

अदालत समाज की

अदालत समाज की

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किस्से को अफसाना बनाने का हुनर

हर किसी को बख्शा ख़ुदा ने।


जबान से निकले हर लफ़्ज की,

दास्तान क्यूं कर बनती ?


धूप में खड़ा गम का मारा,

भीगना बारिश में प्यार में हारा।

तिनका गिरना आंख में, आशिक बेचारा



बख्शिशें खूब देता ज़माना।

गैर जरूरतमंद को।

हाथ फैलाना मेरा,

मेरा गुनाह हो गया।


तकरीरें बाकी थी तमाम,

सर हिलाना, कबूल- ए- गुनाह हो गया।


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