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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

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Dr Jogender Singh(jogi)

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खिड़की की जाली

खिड़की की जाली

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यह क्या किया तूने ? 

माँ बेटे के कान पकड़, चिंता भरी आवाज़ से बोल रही थी।

बेटा गूँ / गूँ की आवाज़ निकाल, कुछ कहना, कुछ छुपाना चाहता।

सटीक सा कोई, बहाना बनाना चाहता। 

माँ का ग़ुस्सा, चिन्ता भी बढ़ती जाती।

यह रुपये कहाँ से लाया ? 

कान उखाड़ दूँगी ग़र नहीं बताया।

कान को माँ ने उमेठा जब,

सारी कहानी बेटे ने कही तब। 

पीछे की दीवार की खिड़की खुली थी,

लोहे की जंग लगी जाली के पार,

जोड़ी आँखों, कानों की सब देखने / सुनने को तैयार।

माँ की समझानी, बेटे की नादानी,

हो कर पार उस जाली से,

बन गई पूरे गाँव की कहानी।

हर तरफ़ थू / थू हो रही थी दोनों की,

मुस्कुरा रही थी खिड़की की जाली,  

जंग लगी, जर्जर, बदनुमा,

बिन ज़ुबान, कह गई कहानी दोनों की।।


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