भुल्लन
भुल्लन
कनपटी के खिचड़ी बालों में चश्मे की कमानी का गहरा निशान,
लम्बाई पहले से बेशक कम, फिर भी छह फुट के पार।
कमर पर हाथ रख थोड़े जतन से उठते हुए,
ज़रा सा लड़खड़ा गया था।
वक़्त उस बेहद खूबसूरत इंसान की,
ख़ूबसूरती खा गया था।
उसके छक्के मारने के अन्दाज़ के हम सब क़ायल थे,
ना जाने कितनी हसीनों के दिल इस भुल्लन की वजह से घायल थे।
“ थोड़ी देर और बैठ जाते” मैंने यूँ ही कह दिया।
मानो उसका छिपा कोई घाव छू दिया।
कन्धे पर हाथ रख मेरे, उसकी आँखें नम हो गई,
मेरे बाप ने बचपन में एक काम सही कर दिया,
सब भूल गए अब मुझे,
अच्छा किया जो मेरा नाम भुल्लन धर दिया।
