कविता - आत्महत्या कोई हल नहीं
कविता - आत्महत्या कोई हल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
जी ले अपने आज को यही तेरा वर्तमान है
जो बीत गया वो अतीत था
अभी आया नया कल नहीं
कोशिश तो कर ऊपर उठने की
तेरी ज़िन्दगी है ये शगल^ नहीं (मन बहलाव )
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
तेरा भी एक परिवार है
तेरे लिए कितना प्यार है तुमसे से है खुशियाँ
उनकी उनको तेरा इंतजार है
मत बन वो सागर जिसका साहिल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
अपने विश्वास को कायम कर
सफलता का परिचायम^ बन (परिचय कराने वाला )
खुद को मत अवसादी बना
जोशीला सा दायम^ बन (सदा, हमेशा)
साफ पानी में खिलता कमल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
देख नियति अचल^ नहीं (स्थिर )
जीवन इतना सरल नहीं
संघर्ष करना पड़ता है
कोई तेरे अगल-बगल नहीं
खुद की शक्ति को पहचान
तेरे जितना किसी में बल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
माना की तनहाई आती है
आंखों में रुलाई आती है
ध्यान को अपने और बढ़ा ले
वरना रुसवाई आती है
धरती भी तो सजल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
ज्यादा सोचने से क्या होगा
सीप-मोती खोजने से क्या होगा
जो तेरा है तुझे मिलकर रहेगा
आत्मविश्वास तोड़ने से क्या होगा
तेरा वक्त बदला है संबल^ नहीं (सहारा )
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
मानव-जीवन एक बार मिला है
मुश्किल से फूल बाग में खिला है
फिर क्यों इसे तोड़ना चाहते हो
तेरे अंदर चला क्या सिलसिला है
"उड़ता" ज़िंदा है ये मरल^ नहीं (मृत,मरा हुआ )
आत्महत्या तो कोई हल नहीं
आत्महत्या तो कोई हल नहीं