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Vivek Agarwal

Tragedy

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Vivek Agarwal

Tragedy

न सुकून है न ही चैन है

न सुकून है न ही चैन है

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न सुकून है न ही चैन है; न ही नींद है न आराम है।

मेरी सुब्ह भी है थकी हुई; मेरी कसमसाती सी शाम है।


न ही मंज़िलें हैं निगाह में; न मक़ाम पड़ते हैं राह में,

ये कदम तो मेरे ही बढ़ रहे; कहीं और मेरी लगाम है।


कि बड़ी बुरी है वो नौकरी; जो ख़ुदी को ख़ुद से ही छीन ले,

यहाँ पिस रहा है वो आदमी; जो बना किसी का ग़ुलाम है।


यूँ तो क़ाफ़िला है ये ज़िंदगी; सभी अजनबी से हैं साथ में,

न ही दोस्त हैं न ही यार है; न कभी दुआ या सलाम है।


जो है सच किसी को पता नहीं; जो पता है सब को वो सच नहीं,

मैं भला किसी से भी क्या कहूँ; बड़ी साख है बड़ा नाम है।


यहाँ ग़म मिले हैं हज़ार अब; जो ख़ुशी थी इक ली उधार तब,

यहाँ मुफ़्त मिलता है कुछ नहीं; यहाँ प्यार तक का भी दाम है।


है दुआ यही न बुरा करूँ; न ही चोट दिल पे कभी करूँ,

जो किसी को दुख दे कमाई हो; वो तो पाप है वो हराम है।


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