न सुकून है न ही चैन है
न सुकून है न ही चैन है
न सुकून है न ही चैन है; न ही नींद है न आराम है।
मेरी सुब्ह भी है थकी हुई; मेरी कसमसाती सी शाम है।
न ही मंज़िलें हैं निगाह में; न मक़ाम पड़ते हैं राह में,
ये कदम तो मेरे ही बढ़ रहे; कहीं और मेरी लगाम है।
कि बड़ी बुरी है वो नौकरी; जो ख़ुदी को ख़ुद से ही छीन ले,
यहाँ पिस रहा है वो आदमी; जो बना किसी का ग़ुलाम है।
यूँ तो क़ाफ़िला है ये ज़िंदगी; सभी अजनबी से हैं साथ में,
न ही दोस्त हैं न ही यार है; न कभी दुआ या सलाम है।
जो है सच किसी को पता नहीं; जो पता है सब को वो सच नहीं,
मैं भला किसी से भी क्या कहूँ; बड़ी साख है बड़ा नाम है।
यहाँ ग़म मिले हैं हज़ार अब; जो ख़ुशी थी इक ली उधार तब,
यहाँ मुफ़्त मिलता है कुछ नहीं; यहाँ प्यार तक का भी दाम है।
है दुआ यही न बुरा करूँ; न ही चोट दिल पे कभी करूँ,
जो किसी को दुख दे कमाई हो; वो तो पाप है वो हराम है।
