जी हाँ मैंने चुप रहना सीख लिया
जी हाँ मैंने चुप रहना सीख लिया
अरसे बाद मैंने जीना सीख लिया,
जी हाँ मैंने चुप रहना सीख लिया।
मेरी कही बातें चुभने लगी लोगों को,
तब से मैंने चुप रहना भी सीख लिया,
जी हाँ मैंने अब जीना भी सीख लिया।
सबके अपने विचार, सबकी अपनी दुनिया,
कौन क्या समझेगा मेरे मन के जज़्बात?
मेरे अहसासों को मेरे अपने नहीं समझते,
सो मैंने आजकल चुप रहना सीख लिया,
जी हाँ, आजकल मैंने भी जीना सीख लिया।
कौन है जो सुनेगा मेरे अंतर्मन की आवाज़,
कौन है जो समझेगा मेरे भावों के अल्फाज़।
सबकी अपनी अपनी सोच, अपनी ही जिन्दगी,
अच्छा हुआ जो वक़्त ने चुप रहना सीखा दिया,
जी हाँ, आखिर मैंने भी अब जीना सीख ही लिया।
जो जैसा करे उन्हें वैसा ही अब करने दो,
मैं कौन हूँ उन्हें कुछ भी समझाने वाला?
क्यूँ छोड़ूँ किसी के लिए मेरे मुँह का निवाला?
मैंने आखिर ख़ुद के लिए जीना सीख ही लिया,
जी हाँ, आजकल मैंने चुप रहना सीख ही लिया।
कुछ सपने थे मन में, उनके संग जीना शुरू किया,
अपनों के लिए सपनों को नकारना बंद किया।
सब के अपने मतलब, मैं ने भी खुद को अपना लिया,
जी हाँ, आजकल मैंने भी जीना सीख ही लिया,
हाँ आजकल मैंने आखिर चुप रहना सीख ही लिया।
कुछ तस्वीरें थी मन में जो हो गई थी बदरंग,
शुरू किया मैंने भरना उन तस्वीरों में अब रंग।
ख़ुद संग ख़ामोशी को अपनाना भी सीख लिया,
बेतुकी बातों को मैंने नकारना अब सीख लिया,
जी हाँ, आजकल मैंने चुप रहना भी सीख लिया।
जिन्दगी की भीड़ में मिले अब तक अपने बहुत,
पर अब मैंने अपने आप से मिलना सीख लिया।
कोई मुझे क्या समझेगा, मैंने सब को समझ लिया,
उलझनों के बीच में ख़ुद को सुलझाना सीख लिया,
जी हाँ, आजकल मैंने जीना भी सीख ही लिया,
क्यूँ कि मैंने आजकल चुप रहना भी सीख लिया।