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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Crime

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Crime

कैसे मनाऊँ आजादी दिवस

कैसे मनाऊँ आजादी दिवस

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एक बार फिर, फिर एक बार घिनौनी दास्तान,

लूट लिए गए फिर किसी मासूम के अरमान।

एक तरफ जब पूरा राष्ट्र जश्न मना रहा था,

एक मासूम की अस्मिता का हनन हो रहा था।

 

क्या गलती थी उसकी, वह तो सेवा में जुटी थी,

फिर क्यूँ सहसा उसपर आज ये आपदा टूटी थी।

न झीने वस्त्र पहने थे, न किसी को रिझाया था,

आखिर किस बात का किसी ने बदला चुकाया था?

 

आज फिर एक निर्भया का मान मर्दन हो रहा था,

देश जब अपनी स्वतंत्रता का जश्न मना रहा था।

यह कैसी होती है मानसिकता, कर देते हैं यूँ हनन,

क्या गलती थी उसकी, क्यूँ कर डाला यूँ चीर हरण?

 

किसी ने न सुनी उसकी चीख, बेबस सिसक रही थी,

आज वह लूट चुकी थी, कल तक जो चहक रही थी।

आज एक लड़की का नहीं, माँ भारती का हुआ हनन,

कैसे कर देते हैं लोग यूँ,  माँ बहनों का मान मर्दन।

 

यह आजादी तो न चाही थी, आजादी के रखवालों ने,

कितने नाजों से पाला होगा, मासूम को घरवालों ने।

खून बरस रहा आसमां से आज, सड़कों पे हुजूम हैं,

कलकत्ता की गलियों में आज, मातम भरा जुनून है।

 

क्या आज़ाद हुए हैं हम, हो रहा अस्मिता से खिलवाड़,

फैल गई तन की भूख, हो रहा हर ओर क्यूँ अनाचार।

क्यूँ नहीं है अब भी हमें, खुली सांस लेने की आजादी?

फिजाएँ हो रही प्रदूषित, क्यूँ हो रही हर ओर यूँ बर्बादी?

 

भगवान भी तो सोचता होगा, क्यूँ अवतरित होती बेटियाँ,

कोई नहीं समझता इनको, बस नोचने को उन्मुख बोटियाँ।

देखकर जिसकी हँसी को, मरीज भी मुस्कुरा दिया करते थे,

आज वो कली तोड़ दी गई, माँ पिता जिसमें हिया धरते थे।

 

रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जब सुनता हूँ ये घिनौनी वारदातें,

क्यूँ जगती है मन में, देख कर देह को ये गन्दी हसरतें।

देश मना रहा था जश्न जब, दरिंदों के मन में जगी हवस,

जब लूटती रहेगी यूँ अस्मिता, कैसे मनाऊँ आजादी दिवस।

 



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