सुना है रेप हुआ है
सुना है रेप हुआ है
कहीं से आवाज़ आ रही थी,
कोई पास ही फुसफुसा रहा था
“अरे सुना है कलकत्ता में कोई रेप हुआ है”
सुनकर कुछ सोचने पर मजबूर हुआ,
कि अब अख़बारों में खबर छपेगी,
नारी शोषण की बातें होगी,
लेख लिखे जाएंगे,
कवि हृदय मुखर होंगे,
बड़ी बड़ी परिचर्चाएं होगी,
पुरुष समाज को कटघरे में खड़ा किया जायेगा,
विपक्ष की संवेदनायें जाग उठेगी
और इन सबसे ऊपर,
जगह जगह कैंडल मार्च होगी
और फिर कुछ दिनों बाद
मामला अदालत में जायेगा
तरह तरह की कवायद होगी
केस को दबाने की कोशिशें होगी,
माता- पिता को धमकाया जायेगा,
राजनीतिक उथल पुथल होगी
केस को आत्महत्या में बदला जायेगा
बलात्कारी को बच्चे समझ कर
क्षमा करने की गुजारिश होगी।
ठीक उसी तरह जिस तरह
निर्भया काण्ड में हुआ था।
घटनायें तो ऐसी होती रहती हैं
कोई इक्का दुक्का सामने आती है
बाकी सब वारदातें दबा दी जाती हैं।
और सिलसिला चलता रहता है।
सुनवाई चलती रहती है
महीनों तक, सालों तक
कोई किसी नेता का साला निकल आता है,
किसी को दरिंदे मासूम बच्चे लगते हैं
पीड़िता की आत्मा का फिर चीरहरण होता है
एक बार नहीं, दो बार नहीं,
बार बार, हजारों बार
पहले तो कुछ तथाकथित “भटके हुए बच्चों” से गलती हो गई
पर अब कानूनी तौर पर
समाज के शिक्षित वकील
अदालत की छत तले
बार बार मृतक लड़की के चीथड़े उधेड़ते हैं
और जनता बैठी रहती है मूक
अंधी, गूंगी, बहरी जनता
और बलात्कार का नया सिलसिला जारी रहता है
और फिर कहीं से एक खबर आती है
कहीं से आवाज़ आ रही होती है,
कोई पास ही फुसफुसा रहा होता है,
“अरे सुना है, मुंबई में कोई रेप हुआ है”।
और फिर वही सिलसिला…..?
