chandraprabha kumar

Tragedy

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chandraprabha kumar

Tragedy

कलियुगी प्रभाव

कलियुगी प्रभाव

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यह क्या घोर कलियुग आ गया 

कलिकाल का जो वर्णन सुना था ,

पुस्तकों में जो कुछ वर्णन पढ़ा था 

उससे भी भीषणतम क्रूर कलियुग है ।


न देश की संपत्ति की परवाह है 

न गुरुजनों का कोई सम्मान है ,

न नैतिकता के कोई संस्कार हैं 

दिशाहीन दिग्भ्रमित युवा जन हैं।


सब ओर अशांति का साम्राज्य है

माता सुता भगिनी का आदर नहीं,

नारी का हो रहा है चीर हरण

बर्बरता क्रूरता अपने चरम पर है।


मानव हिंसा दानवता में डूब गया है

धर्म नीति दया संस्कार सब ग़ायब हैं ,

मानव पशु से भी बदतर हो गया 

न अपने सम्मान का कोई ध्यान है।


न औरों के लिए कोई सम्मान है

न देश की संपत्ति की सुरक्षा की चिंता है ,

मणिपुर जल रहा है निर्दय हाथों से

मेवात नूंह जल रहा है उन्मादियों से।


 शोभा यात्रा में शामिल लोगों पर

 वीभत्स हमला निर्दय घात है,

वाहनों को अग्नि में भस्म किया 

और पत्थरों से जन जन पर वार हुआ। 


पशु में भी कुछ सभ्यता संवेदना है

मानव किस अंधे कुएँ में जा गिरा है,

पतन की कोई सीमा भी न रही

अतल गहराइयों में पाप की धँसा है।


विवेक धीरज धर्म सब डूबा है 

सम्वेदना सहिष्णुता सब लुप्त है,

मानव राक्षस से भी अधम हो गया 

ज्ञान परमार्थ सब धूमिल हो गया। 


सद् बुद्धि का कहीं कुछ पता नहीं

धरती पर रोष का भयंकर प्रर्दशन है,

व्यवस्था नियम सब ध्वस्त हो गये

सृष्टि पर प्रलय का यह संकेत है। 


देश के सुधि जनों को जागृत होना है

अब तटस्थ बने रहने का अवसर नहीं,

उठकर समवेत प्रयत्न सबको करना होगा

पशुता हटा मानवता स्थापित करने का।

           

        



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