खारे पानी को आँखों का पता
खारे पानी को आँखों का पता
कितने तो आँसू बहे होंगे इन आँखों से, घर ये खारे पानी का,
समंदर तक बह रहे खारे पानी को पता होगा इन आँखों का।
जाने कितने दर्द हैं इन आँखों में, कितनी ही पीड़ाएं सही हैं,
इन आँखों के रास्ते, जाने खारे पानी की कितनी धार बही हैं?
जब भी देखता हूँ इन बूढ़ी आँखों को, दिल दरक सा उठता है,
इन काँपती बूढ़ी आँखों में सहसा, खारा पानी रिसता रहता है।
जैसे हो कोई खारे पानी का समंदर, देख रही सबको निगाहें,
कुन्द हो गई लोगों की भावनाएँ, देख आँखें भर रही हैं आहें।
किसी अपने ने बड़ा दर्द दिया होगा, उस लाचार बूढ़ी माँ को,
कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है, दिए आँसू इन आँखों को।
गालों में झुर्रियाँ, आँखों में आँसू, दिल देख मेरा अब रोता है,
अपनी बूढ़ी माँ को यूँ रुलाकर, कोई बेटा चैन से सोता है।
यही हो गई आज की मानसिकता, बच्चे दिखा देते औकात,
पाल पोष कर बड़ा किया जिस माँ ने, मार देते उसे ही लात।
सारे आँसू जमा हुए इन बूढ़ी आँखों में, बनकर खारा पानी,
फिर भी बड़ा धैर्य माँ में, न निकले बद्दुआ इनकी जुबानी।
>जिन माँ पिता ने बोलना सिखाया, उन्हीं की जुबान हुई बंद,
जिस माँ ने हमें बड़ा किया, उसे ही नहीं देतें हम रुपये चंद।
माँ पिता ने ही तो दिए संस्कार, दिया एक खुशहाल परिवार,
दिया उन्होंने प्यार अपार, और दी घर की छत और दीवार।
बनकर खुद बरगद का पेड़, बच्चों को छाँव दी हैं इन्होंने,
खुद साथ चल बच्चों के, जिन्दगी की राह दिखाई जिन्होंने।
अब वही बच्चे जाने क्यूँ, उन्हें जीने के तरीके सिखाते हैं,
अब वही बच्चे जाने क्यूँ, उन्हें चलने के सलीके सिखाते हैं।
बात बात पर देते एक ताना, “आपने हमें दिया ही क्या है”?
परवरिश के बदले क्या दिया इन्हें, खारे आंसुओं का नजराना।
ऐसी औलाद से तो बेऔलाद भले थे, आँखें नम तो न होती,
न आता आँखों में खारा पानी, न बूढ़ी आँखें यूँ रोकर सोती।
न दिन रात यूँ लहू छलकता, न नम होती कभी बूढ़ी आँखें,
न किसी की राह में जगी रहती, काश सुकून से सोती आँखें।
परिवार के होते हुए भी, क्यूँ रहना पड़ता इन्हें वृद्धाश्रम में,
क्यूँ बहाने पड़ते हैं यूँ आँसू, क्यूँ भर गये दुःख दामन में?