सार जिन्दगी का
सार जिन्दगी का
चमकना चाहते हो अगर सूरज बनकर,
तो सूरज की तरह पहले जलना सीखो।
जीना है अगर तुम्हें जिन्दगी के संग,
तो जिन्दगी में तुम पहले जूझना सीखो।
चलना है पथरीली राहों पर अगर,
तो ख़ुद भी पत्थर तुम बनना सीखो।
बनना चाहते हो अगर शिव सरीखे,
तो जहर के घूंट पहले पीना सीखो।
न तपाया हो तन मन अपना तुमने,
सूरज बनने का सपना क्यूँ देखते हो?
न चाहते हो अगर मुसीबतों से जूझना,
फिर जिन्दगी से क्यूँ कुछ मांगते हो?
ख़ुद पत्थर अगर नहीं बन सकते तुम,
तो क्यूँ पथरीली राहों पर चलना चाहते हो?
न पी सकते हो समाज का विष अगर तुम,
क्यूँ कैलाश की चोटी पर चढ़ना चाहते हो?
जिन्दगी की अपूर्णता को न भर सको तो,
पूर्णता की यह चाह भी तुम क्यूँ रखते हो?
आधी अधूरी राह ही चले हो तुम अभी,
फिर क्यूँ लंबी छलांग लगाना चाहते हो?
हर पड़ाव को पार करना है बड़ा जरूरी,
तभी हासिल कर पाओगे जिन्दगी में मुकाम।
रखो सोच समझ कर जिन्दगी का हर कदम,
तभी तो हो पायेगा सुखी जीवन का इंतजाम।