तुम रसगुल्ला हो रस से भरी
तुम रसगुल्ला हो रस से भरी
तुम रसगुल्ला हो रस से भरी, मैं बूंदी का सूखा लड्डू,
तुम हो मेरी प्यारी सी गुड़िया, मैं हूँ तेरा मोटा सा गुड्डू।
तुम हो बाग में उड़ती तितली, मैं हूँ बाग़ का खिला गुलाब,
तुम जब आती हो नींद में मेरी, देखता हूँ तब तेरे ख़्वाब।
तुम तो हो समंदर की सुनामी, मैं बन जाऊं तेरा साहिल,
तुम्हारे बिन तो सूनी यह जिन्दगी, न रहूँ मैं किसी काबिल।
तुम हो चासनी में चहकती जलेबी, मैं हूँ देशी घी का घेवर,
तुम तो हो भावों की कविता, मैं हूँ तेरे भावों का कलेवर।
तुम हो रसगुल्ले सी नरम नरम, मैं समोसे सा गरम गरम,
जब मिलते दोनों प्रीत में, सारी कड़वाहट हो जाती हजम।
बना देती हो मेरी ही चटनी, लाता हूँ जब बाजार से धनिया,
कुछ भी तुम मांगती हो तो, घूम आता हूँ मैं पूरी दुनिया।
मैं तो हूँ गैस का चूल्हा, तुम बन जाती हो जलती आग,
मुझे समझती हो तुम आलू, बना देती अकसर मेरा ही साग।
तुम तो होली में उड़ती फाग, मैं हूँ उस फाग का रंग,
बनाती हो होली में भाँग तुम, पीती नशे में मेरे ही संग।
तुम हो मेरी चुलबुली कविता, मैं हूँ उस कविता का लफ्ज़,
दिल में होती धड़कन तुम को, पर देखती हो तुम मेरी नब्ज़।
जो आई तुम मेरी जिन्दगी में, वीरान जिन्दगी हुई आबाद,
कभी अगर बिछड़ गये हम, रखेंगे आज की यह मस्ती याद।