रहने दो मत छेड़ो दर्द को
रहने दो मत छेड़ो दर्द को
कितना सताओगे मुझे, कितना तुम कुरेदोगे,
रिश्तों के धागों को आखिर कितना उधेड़ोगे?
बहुत सह लिया मैंने, अब और नहीं सह सकती,
रहने दो मत छेड़ो दर्द को, यूँ नहीं रह सकती।
बचपन से लेकर अब तक, खूब सताया सब ने,
और न सह सकूँ, अब तक खूब रुलाया रब ने।
पता नहीं चला मुझे, क्या खता हुई ये न सूझे,
क्यूँ रुलाते हो, यह बात ही न समझ आई मुझे।
पूछती हूँ आज जमाने से, क्या कुसूर था मेरा,
कब मिटेगा अंधेरा, कब जीवन में होगा सवेरा?
क्या लड़की बनकर जन्म लेना ही हो गई खता,
आखिर क्या है मेरी खता, हे रब तू ही मुझे बता।
कितना भी अच्छा कर दूँ, कोई खुश नहीं होता,
सबके लिए मैं करती हूँ, पर कोई यश नहीं होता।
कुछ भी करूँ क्यूँ न, बात बात पर करते अपमान,
क्यूँ दर्द देते है सब मुझे, मुझे भी चाहिए सम्मान।
क्या लड़की हो कर जन्म लेना ही मेरी गलती है,
क्यूँ मेरी हर सही बात भी सभी को सदा चुभती है?
कोई तो समझ लो मुझे, कुछ तो कर दो समाधान,
आखिर क्या दिक्कत है मुझसे, इसका करो निदान।