बल ही तो है
बल ही तो है
प्रेम भी एक बल ही तो है
हमारी सृष्टि की निर्मित का
और सृष्टि की शक्ति के
समक्ष हम क्या हैं
हमारा होना भी तो
उसी पर निर्भर है
फिर भी हम शक्ति जुटाते हैं
युद्ध लड़ते हैं,जीतते है
गौरवान्वित महसूस करते हैं
अपने लिये या अपने देश के लिये
कुछ विनष्ट करते हैं
और सृष्टि तटस्थ रहती है
हमें अपनी ही दी हुयी शक्तियों
का उपयोग करने की आजादी देती है
आजकल ये सिलसिला टूट रहा है
हम सृष्टि को ही नष्ट करने पर आमादा हैं
और रचनाकार अपनी रचना को
नष्ट होने से बचाता है
बचा रहा है
हस्तक्षेप कर रहा है
विनष्टता की बात करें तो
हम कर ही क्या सकते हैं
प्रलय तो उसके निर्माण का
एक उपादान भर है।