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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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स्पर्श

स्पर्श

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वक्त हमें स्पर्श करता हुआ सफर में है
 कभी लगता है ये हमारे पास
ठहर गया है उम्र भर के लिए,
कभी लगता है ये तो कभी रुकता ही नहीं है।
जो भी हो उसकी अपनी फितरत है
हालांकि की जीवन उसके अधीन है
फिर भी उसकी अपनी फितरत है
 लगता है ठहर जाता है
 वो भी कभी कभी वक्त की तरह।
कभी कभी लगता है चलना ही जीवन है
 और कभी कभी लगता है
बिखर जाना ही जीवन है।
इन तमाम आभासी या
वास्तविक अनुभूतियों के बीच
 लगता है जीवन समय की रचना है
 क्योंकि समय है तो जीवन है।
 जाहिर है समय को समझने के लिये
जीवन को समझना जरूरी है
तो चलिए न जीवन की तरफ
 चलिए न अपनी तरफ।


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