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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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आज

आज

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आज ,कल जैसा तो नहीं है
कल से कितना भिन्न है आज
आकाश में बादल नहीं है
हवा भी कल की तरह गर्म नहीं है
 शोर की जगह चारों तरफ शांति है
 तल्खियों की जगह प्रेम की सक्रियता है
हर गली में मुस्काते हुए लोग आ जा रहे
हैं मन में कोई दुविधा नहीं है
मन अपनी चंचलता के इतर टंग गया है
अपने आकाश में
और हम आईने की तरह उसमें
अपना चेहरा देख रहे हैं।
बुद्धि भी कविता लिखने के मूड में
कविता की तरह गुनगुना रही है कि
 तुम्हारे होने से ,ये सब कुछ है।
 अभाव भी तृप्त हो गया है
और सबसे मजेदार बात तो ये है
 कि हृदय आनंद से सराबोर हो गया है।


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