STORYMIRROR

Renu Singh

Abstract

4  

Renu Singh

Abstract

मन मेरा मनमौजी

मन मेरा मनमौजी

1 min
665

मेरे अंदर एक मन रहता

मनमौजी बन थिरकता रहता

आंखें बंद करते ही

मन मेरा बन जाता मनमौजी

पंछी बन उड़ता आकाश में

मछली बन तैरता सागर में

तितली बन उड़ता उपवन में

भंवरा बन मंडराता कलियों में

थक जाता तो खो जाता खुद में

खोजने एक प्रकाश पुंज को

जो चिरन्तन रहता मुझमें

पर उसे कोई देख न पाता

मनमोजी मन मेरा धीरे धीरे

रमने उसमें लगता

जब चाहा मैंने उसे साधना

बंधन तोड़ भाग निकलता

मनमौजी मन मेरा

देखो अब उसी में रमता।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract