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Renu Singh

Romance

3  

Renu Singh

Romance

मानिनी

मानिनी

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मानिनी थी अभिमानी नहीं

द्वार खड़ी ईशत् अवगुंठित

प्रतीक्षा में थी प्रियतम की

अन्तस्थ पीड़ा विगलित हो

कमल नयनों में थी संकुलित

मन्द समीर प्रवाहित हुई

तरिणी की मधुर सुगन्ध लिये

कमलिनी थी प्रतीक्षा रत

चांदनी में खिलने के लिये

क्यों न फिर व्यथित हो कोमलाङ्गी

पिय मिलन की प्यास लिये

मानिनी है अभिमानी नहीं

दुःख से विगलित गात लिये

द्वार खड़ी ईशत् अवगुंठित

पिय मिलन की आस लिये।

   



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