जिस्म ही जिस्म
जिस्म ही जिस्म
रूह तो दफ़ना आये हैं कहीं
जिस्म ही जिस्म है शहर में
गलियों में ,बाजारों में
होटल में , बारों में
बियाबान में ,बागों में
जिस्मानी रिश्ते चढ़ रहे
परवान हैं
जिस्मों की दौड़ में
पतिपत्नी का रिश्ता भी
बन गया बन्धन है
कोई यहाँ कोई वहाँ
भावना रहित सम्बन्ध है
न नदी का बहाव है
न झरने की कलकल है
न हवा की रवानगी है
न बादलों की गरज से
गले लग जाने का मन है
जिस्म हैं तो भूख है
भूख है तो मिटानी भी है
यूं ही चल रहे
जिस्मानी रिश्ते हैं
जज़्बात नहीं ,प्यार नहीं
अहसास नहीं,
दिलों में धड़कन नहीं
तू नहीं तो क्या और सही
जिस्म तो जिस्म है
तेरा न सही उसका ही सही
इसी को प्यार का नाम दे
सिमटते जा रहे हैं जिस्म
बिन भावनाओं के
प्यार का खेल
खेल रहे हैं जिस्म
रूहें तो गोपियों की थीं
जिस्म का न उन्हें होश था
बंसी की धुन सुन
दौड़ी चली जाती थीं
जिस्म वहीं रह जाते
रूह चली आती
जो कान्हा की दीवानी थीं
आज की भागमभाग में
इतना ही हो पा रहा है
कि जिस्मों को प्यार का
जामा पहना
जिंदगी जिये चले जा रहे हैं जिस्म।
