कंसवध
कंसवध
काल कराल विकराल कंस को
करने को काल कवलित
पहुंच गए मथुरा कान्हा
चाणूर और मुष्टिक का देख दारुण अंत
भय प्रकम्पित हुआ कंस
देख कान्हा को पैर पटक रहा
दिखाने अपना बल
घुमाने लगा असि भयभीत हो निरन्तर
करने लगा पद प्रहार ऐसे कि धरती भी उठी कांप
देख उसकी विविध चेष्टा क्रोधित हुए कान्हा बन गये अतुलित बलधामा
पितृद्रोही को खींच मंच से
दिया धरती पर पटक
चढ़ बैठे उसपर ज्यों पर्वत धरती पर
सह सका न कंस यह अप्रत्याशित प्रहार
चिल्ला रहा कंस
छोड़ दे कान्हा बस एक बार
कैसे छोड़ दूँ तुझे मैं कंस मामा
तूने किये हैं बहुत अपराध
दया नही तुझे तब आई
जब तूने बाल हत्या
अनगिनत बार कराई
कंस आलोड़ित हो रहा मिट्टी में
राजमुकुट गिर गया धरती पर
बिखरे केश उसके पकड़ कर
कान्हा ने किये मुष्टि प्रहार उस पर
चिल्लाने लगा छोड़ दे कान्हा छोड़ दे कान्हा
दिग्दिगन्तगूंज रहा था उसका क्रंदन
जिसने सुना था न एक बार भी
मातपिता का करुण रुदन
हटाता जितना कंस अरि बने कान्हा को
जकड़ लेते कान्हा ज्यों गरुड़ पकड़े सर्प को
बैठे कान्हा कंस को सिंहासन बना
एक हाथ से केश पकड़
दूजे से दिया ऐसा मुष्टि प्रहार
निकल गए प्राण पापी के
चहूँ दिक् छा गया उल्लास
वह पापी निरन्तर शत्रु भाव से
कृष्ण का करता था चिंतन
कृष्ण के सारूप्य को प्राप्त कर
समा गया उसी में तोड़ सारे बन्धन
देवता भी करने लगे हर्ष ध्वनि
बजने लगे शंख दुंदुभि
पुष्प वर्षा हो रही आकाश से
नृत्य कर रहे नर नारी बाल सभी
कंस वध कर कृष्ण ने किया
उपकार सभी का
गूंज उठा मथुरा प्रदेश
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण।