बेटी भी माँ भी
बेटी भी माँ भी
घर में कुछ भी
नहीं था
चूहे कूद रहे थे
भूख से
और चूल्हा तो
किसी राक्षस की तरह
मुँह फाड़े बैठा था
घर में केवल था
बेटी की गुल्लक
जो बहुत हिफाजत के साथ
रखी हुई थी
उसी के पैसे से
वह खिलौना खरीदती
लाल फीते से
सजाती अपनी बाल
सुबह-शाम वह
हिलाती थी गुल्लक
ख़ुशी से चूमती थी
सभी की नज़रों से
दूर छुपाकर रखती थी
जब घर पर
चूल्हा जला नहीं
खाना पकाने के लिए
पानी गर्म हुआ नहीं
गरीबी नामक काला अँधेरा
जब फैलने लगा चरों ओर
तब बेटी मेरी
खिलौना भूल गई
लाल फीते से
सजना भी भूल गई
याद किया केवल
सफ़ेद फूलों जैसा भात
और परिवार के लोगों की
शेर जैसी भूख
वह जानती है
खिलौना से भी
खाना और प्राण
बड़ा होता है
इसीलिए तो वह
मेरी बेटी भी है
और माँ भी।