आज़ाद अनु
आज़ाद अनु


सोचा तुम्हे एक नदिया कहूँ,
जो निरंतर बह रहीं है
अपने लक्ष्य की ओर,
पर नदिया भी सागर से मिल
अपनी पहचान खो देती है !!
सोचा तुम्हे पहाड़ कहूँ,
जो हर मुसीबत को झेलता
अडिग खड़ा रहता है,
मगर धरती की छोटी - सी हलचल
उसकी नींव हिला देती है !!
फ़िर सोचा
तुम एक कली हो,
जो खिलते ही सबको मोह ले,
मगर वो भी एक मौसम
बाद मुरझा जाती है !!
सोचा तुम तो एक बादल हो,
जिसकी रिमझिम का
सभी को इन्तज़ार रहता है,
मगर कभी - कभी
वो भी गरज कर
बरसना भूल जाते हैं !!
सोचा एक पंछी हो तुम,
जो बेपरवाह इतनी ऊंचाई
को छू लेते हैं,
मगर लोग उसकी भी
उड़ान को कैद कर लेते हैं !!
सोचा तुम अग्नि हो,
जिसकी धधक बुराइयों को
जला कर राख कर देती है,
मगर पानी की ताकत
उसे भी कमज़ोर बना देती है !!
पर अब सोचती हूँ
तुम्हारी पहचान को
इस प्रकृति में खोजना ही क्यों ?
क्योंकि तुम्हारी पहचान तो
खुद तुम से ही है
तुम तुम हो...!
जिसने अपनी पहचान को
खुद गढ़ा है
जिसके साहस को
कोई हलचल तोड़ नही सकती
ना ही जिसके विचारों को
कैद किया जा सकता है
जिसे कोई भी ताक़त
कमज़ोर नहीं बना सकती !
जिसका गहना
उसका मान सम्मान है
और जिसकी मुस्कुराहट
उसके आज़ाद विचारों की पहचान है...!