मेरी कलम
मेरी कलम
मेरी कलम बहुत ही चयनशील है ,
ये हर तरह के गीत की ताल नहीं पहचानती है ।।
नहीं लिख पाती है किसी दिए गए विषय पर ,
ये अपने विषयों का खुद चुनाव करती है ।।
नहीं सुसज्जित कर पाती मेरी कविताओं को रस और अलंकारों से ,
मगर ये अनुभवों और भावनाओं से मेरी कविताओं का साज श्रृंगार करती है ।।
नहीं बदल पाती ये जन जागरण की सोच को ,
मगर ये मेरे सोचने का दायरा बढ़ाती है ।।
नहीं निकाल पाती किसी विषय का निष्कर्ष ,
मगर मेरे मन की उथलपुथल को शांत कर देती है ।।
नहीं बयान कर पाती ढेरों कहानियां ,
मगर ये मुझसे जुड़ी हर कहानी गढ़ जाती है ।।
नहीं लिख पाती किसी के विरोध में ,
मगर मेरे जीवन में स्कारात्मकता लाती है ।।
ये मेरी कलम भी कुछ कुछ मुझ सी ही है ,
जो कदम उठाने से पहले एक बार हिचकती है ।।
और अगर सोच ले कुछ करना है
फिर कुछ कर के ही थमती है ।।