कश्मकश
कश्मकश
दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और
समझ नहीं आता आखिर जाऊं किस ओर
जाने क्यों रोक रखा है इन कदमों को
जब देना चाहती हूं एक मौका खुद को।।
एक तरफ अपनी खुशियों की आशा है
तो दूसरी तरफ अपनों की निराशा है
जाने क्यों कभी मैंने हिम्मत नहीं की
जाने क्यों कभी मनमानी नहीं की ।।
दूसरों की इच्छा को ही समझा बस अपना
वही अपना हो गया , जो था उनका सपना
जिंदगी को जिया नहीं बस व्यतीत कर दिया
हर सुनहरे अवसर को बर्बाद कर दिया ।।
पुराने पन्ने खोलो भी तो कुछ खास नहीं
अब तक कुछ ना किया यह विश्वास नहीं
आज फिर एक इच्छा ने जन्म लिया है
हां नहीं के प्रश्नों ने घेर लिया है ।।
या तो बस वही करूं जो दिल चाहे
फिर चाहे जो भी हो बस देखा जाए
या फिर वही पुरानी कहानी
जहां इस दिल की मैंने कभी न मानी ।।
लिया फैसला अगर अपने लिए तो
भविष्य की जिम्मेदारी मेरी होगी
सफल रही तो आत्मविश्वास बढ़ेगा
नहीं तो सारी कामनाएं फिर अधूरी रहेंगी ।।
अब बस एक ऐसा सुझाव मिल जाए
इस परेशानी का हल हो जाए
दिल और दिमाग दे एक राय
जो मेरे निर्णय को सुदृढ़ बनाएं ।।
