ग़ज़ल
ग़ज़ल
मेरा अपना बुरा है तो नज़र औरों की कहती है
मेरी नज़रों में उल्फ़त की चमक बिजली सी रहती है।
कभी हमने नहीं देखा अंधेरा भी डराता है
फ़िज़ा दिल की हमेशा बेअसर सी अपनी रहती है।
किसी की भी ज़ुबां कोई कहाँ तक एक सी होगी
ये दुनियाँ है कहेगी कुछ हमेशा कहती रहती है।
कोई क्या सोचता होगा ज़रूरी तो नहीं सोचो
नदी का काम है बहना वो हद भर बहती रहती है।
क़दम "शब्बीर" तुम अपना अपनी राह पर रखना
बहुत राहें मिलेंगी ज़िन्दगी में मिलती रहती है।