नच गर्ल
नच गर्ल
लोकप्रिय एक कोर्ट डांस जाना जाता जिसे नच गर्ल के रूप में,
ईस्ट इंडिया कंपनी शासन काल प्रमुखता आई इसके स्वरूप में।
मुगलों के शाही दरबार से ही आरंभ हो गई नाच की यह यात्रा,
नवाबों व रियासतों के महलों में फिर होने लगी इनकी प्रतीक्षा।
फिर जमींदार या फिर ब्रिटिश राज विशेष अवसरों का हिस्सा,
बनने लगा नाच औरों की खुशी में नाचना यही इनका किस्सा।
नृत्य सर्वप्रथम देवदासी द्वारा, केवल मंदिरों तक ही था सीमित,
केवल धार्मिक कारणों से हिंदू मंदिरों में नृत्य होता था प्रदर्शित।
मुगल काल के दौरान ये नृत्य बनने लगा, मनोरंजन का साधन,
नाच लड़कियाँ नियमित रूप से, दरबारों में करने लगी प्रदर्शन।
विशेष आयोजनों में, प्रदर्शन हेतु भी किया जाने लगा आमंत्रित,
नाच देखने मेहमानों को अलग हॉल में किया जाता था एकत्रित।
कई शासक तो युद्ध शिविरों में, करते शामिल नच लड़कियों को,
उपहार या पुरस्कार स्वरूप दे दिए जाते थे ब्रिटिश प्रवासियों को।
करती ये नच लड़कियाँ अक्सर, अलग-अलग जगहों की यात्रा,
कभी सड़कों पर तो कभी अमीर घरों में प्रदर्शन इनका दिखता।
उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब पश्चिमी शिक्षा का हुआ था प्रसार,
ईसाई मिशनरियों ने इनका नृत्य कलंकित कर किया तिरस्कार।
हीन भावना दृष्टि ने इस कला का अर्थ कर दिया पूर्ण परिवर्तित,
नच लड़कियों को वैश्यावृत्ति करने हेतु किया जाने लगा बाधित।
नृत्य अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन, एक कला है सम्मानजनक,
बीसवीं सदी की शुरुआत तक यह कला बन गई अपमानजनक।