ममतामयी माँ(अहिल्याबाई होल्कर)
ममतामयी माँ(अहिल्याबाई होल्कर)


रथ सवार मालोजी निकले राजबाड़े से
राह में बछड़ा खेले, मासूम सारे जहाँ से
चपेट में आकर रथ से ,हुआ वह घायल
तड़प-तड़प प्राण त्यागे वक्त भी कायल
आँख न उठाई मालोजी , बढ़ते गए भागे
माँ अहिल्या रथ रुका वह वहीं राह आगे
देखा दृश्य करुण, गाय बैठी, अश्रु बहें धार
पूछा सबसे, "बतायें कौन इसका जिम्मेदार?
सुनकर सच, ममता रो उमड़े प्रेम का सागर
बुलाया बेटे को, दी सज़ा, न्याय की आगर
बोलीं, "गाय के बछड़े का कर तू प्रायश्चित"
हो रहा उनका मन विचलित ईश्वर इच्छित
अहिल्या का न्यायी हृदय, प्रेम की मूरत
सिखाया सबको, न्याय मिलेगा हर सूरत
रिश्ते नाते हैं समान, न्याय सर्वोपरि सदा
अहिल्या ने जीवन जिया, न्यायदेवी सर्वदा
साहसी व ममता मूरत, थी अद्भुत सीरत
धर्म ध्यान, न्याय पालन, उसकी फितरत
अक्षम्य दोष ,गाय का बछड़ा मरा निर्दोष
मालोजीराव मृत्युदंड आदेश हुआ सघोष
मृत्युदंड का जब दिया गया था फरमान
दरबार में छाया सन्नाटा सहमें अरमान
कोई न उठा सका रथ लगाम को हाथ
स्वयं अहिल्या ले लगाम किया परमार्थ
ममता कातर गाय दिखा गयी एक राह
रथ के आगे खड़ी हो बता गयी थी चाह
हर बार रोकी आके राह, रथ हांक न पाईं
ममता और न्याय का अद्भुत संघात माई
दरबारियों ने की निवारण शंका समाधान
गो माता देती आपके पुत्र को जीवन दान
धर्म पथ में न्याय मूरत, साहस की मिसाल
अहिल्याबाई होलकर का ये महान कमाल