STORYMIRROR

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

4  

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

बोझ

बोझ

1 min
309

झुकी हुई है कमर, पर जज्बा नहीं,

सिर रखे पत्थरों का हिसाब नहीं।

हर पत्थर में छुपी है एक कहानी,

जीवन की पीड़ा, संघर्ष से पुरानी।


धरती से उठाया, आसमान लांघा,

हिम्मत से लड़ा, हर दर्द को कांधा

ये पत्थर बोझ नहीं, बल्कि संबल,

जो हार के क्षण में भी बने न दुर्बल 


कभी जिम्मेदारी रहे कर्तव्य भार,

तो कभी समाज के ताने बेकार।

लेकिन झुककर भी जो न गिरा,

उसके हौसले बड़े पर्वत से निरा।


सवाल ये नहीं बोझ कितना भारी,

प्रश्न है कि मन की कितनी तैयारी।

पत्थरों का वजन कम हो जाता है,

इंसा जब खुद को पहचान पाता है।

          


এই বিষয়বস্তু রেট
প্রবেশ করুন

Similar hindi poem from Abstract