कोयल
कोयल
बड़ा मीठा सा लगा उस कोयल का गीत,
ना जाने वो क्या कह रही होगी,
ना जाने हस रही होगी या दर्द से रों रही होगी,
एक मीठा सा एहसास था उसके गीत में,
ना जाने कैसी खनक थी उसके गीत में,
क्या पता वो रास्ता भूल गई हो,
क्या पता किसी अपने से बिछड़ गई हो,
रात भर वो बैठी रही,
ऐसा लगा किसी के इंतजार को सारी रात बैठी रही,
सुबह तक उसकी आंखे थकी नहीं,
पंख फैला उड़ने की हिम्मत भी उसमें अब बची नहीं,
प्रकृति भी दर्द खुशी हर जज़्बात को समझती है,
अपने अपने तरीके से कुदरत भी एहसास बयान करती है,
उस कोयल ने बाया करा जो उसके दिल में था,
भरे से मन को उसने गीत गा कर खाली किया था,
काश वो गीत फिर सन लूं,
काश एक बार फिर उस लम्हे को रूह में भर लूं,
कुछ देर लगी इस नए सबक को समझने में,
काफी देर लगी सच्चे रिश्ते को समझने में।