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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational

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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational

अध नग्न समाज

अध नग्न समाज

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अध नग्न ये समाज बात लाज की करता है,
घर की चौखट न लांघे बहु बेटी इस बात से डरता है,
 रीति रिवाजों की किताबें छाप कर उन्हीं पर टिप्पणी करता है,
महिलाओं का वकील पुरुष समाज बना बैठा है,
 बाबुल ने बिहाई जो लाडली,
घर आई जब वो आधी जली,
कोई आया न पांच प्रधान तब,
रह गया अध नग्न समाज तब,
आवाज़ जब उसने अपने हित की उठाई,
कुलटा अभागी वो कह लाई,
दहेज में रकम कम दी थी,
 उस बाबुल ने तो अपनी जीवन पूंजी दे दी थी,
 अपना सब पीछे छोड़,
घर घाट सब सपने छोड़,
पराए आंगन में उसने अपनी क्यारी थी पसारी,
 आज उस आंगन में आधी जली तड़पी थी बेचारी,
रिश्ते निभाने में कहीं रखी न उसने कोई कमी,
सिक्को में तोली गई बाबुल की अनमोल कली,
आज भी बंद दरवाजों के पीछे चीखे थी,
 युग बदले है बेशक स्त्री आज भी दुर्योधन से थी घिरी, अपने कर्तव्यों के प्रति वह हृदय से समर्पित थी,
बस दहेज में चंद सिक्को की थी कमी, 


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