कविता
कविता
जिसको हमने अपना समझा,
उसने हमसे दगा किया
दौलत की ख़ातिर उसने ही,
प्रेम ह्रदय से जुदा किया
माना दौलत से दुनिया की,
हर सय को तुम पा सकते हो
पर दौलत के दम तुम सच्चा,
प्यार नही ला सकते हो
किस तरह कटे हैं दिन मेरे,
कैसे रातें काटी हैं
खुद दुःख दर्द लेकर हमने ,
सबको खुशियां बाटी हैं
पर मिला हमे बस छल यहाँ ,
किसको दोष लगाये हम
सारे अपने इस हैं फेरिस,
किसका नाम बताये हम
पर उनके कू कर्मो के अब,
गीत नही गा सकते हो
मतलब का संसार यहाँ पर ,
मतलब से ही यार बने
मतलब से सब फूल बने हैं ,
मतलब से सब खार बने
मतलब के हैं फंदे सारे,
मतलब के ही हार बने
मतलब निकला इंशा निकले,
कितने पहरेदार बने
मतलब से तुम अपने सच्चे ,
यार नही पा सकते हो
दौलत के दम पर तुम सच्चा,
प्यार नही ला सकते हो
निस्वार्थ भाव से प्रेम करे ,
ऐसा न इंसान मिला
दो कोड़ी में बिकता सुन लो ,
आज हमे ईमान मिला
रूप बनाये इंसानों का ,
आज हमे शैतान मिला
स्वार्थी लोगो की जिद जद में,
आज पड़ा भगवान मिला
स्वार्थ का यह प्रपंच रच कर भी,
स्वर्ग नही पा सकते हो
दौलत के दम पर तुम सच्चा,
प्यार नही ला सकते हो।