ग़ज़ल
ग़ज़ल
आस पास है मेरे पर नज़र नहीं आता
जो नज़र में रहता है वो नज़र नहीं आता
लोग है बहुत लेकिन हम यक़ी करें किस पर
जिंदगी में अब कोई मोतबर नहीं आता
रुख़्सती के तुम पहले प्यार से करो आमद
जो गया यहाँ से वो लौट कर नहीं आता
रात दिन भटकना ही यार इसकी क़िस्मत हैं
इश्क़ का सफ़र हैं ये इसमें घर नहीं आता
हाल दिल सुनाने में वक्त तो लगेगा ही
प्यार का मुझे क़िस्सा मुख़्तसर नहीं आता
दरमियां हमारे अब दूरियां रही काबिज़
मैं उधर नही जाता वो इधर नहीं आता
मयकदे में आकर के क्या करें कोई वादा
मयकदे से अब कोई बाख़बर नहीं आता
याद भी नहीं आये कह दो यार को जाकर
जो धरम के जीवन में यार गर नहीं आता।