Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

4  

कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

ग़ज़ल-सोचा जब भी तुझें

ग़ज़ल-सोचा जब भी तुझें

1 min
365



सोचा जब भी तुझे सोचता रह गया

तेरी तस्वीर को देखता रह गया


इस तरह से रही दरमियां दूरियां

वो वहाँ रह गया मैं यहाँ रह गया


प्यार भी अब नहीं यार भी अब नहीं

दर्द ही तो बचा और क्या रह गया


अक्स ओझल हुआ आँख से इस तरह

सामने बस मेरे आईना रह गया


रात भर इक नज़र से थी नज़रें मिली

पास आये मगर फासला रह गया


मिट गया प्यार दिल से बता क्या कहूँ

प्यार के नाम पर हादसा रह गया


एक अरसा हुआ तुमसे बिछड़े हुए

राह तकता तेरी हमनवां रह गया


याद करते रहो आप उसको धरम

बस यहाँ याद का सिलसिला रह गया



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama