ग़ज़ल-सोचा जब भी तुझें
ग़ज़ल-सोचा जब भी तुझें
सोचा जब भी तुझे सोचता रह गया
तेरी तस्वीर को देखता रह गया
इस तरह से रही दरमियां दूरियां
वो वहाँ रह गया मैं यहाँ रह गया
प्यार भी अब नहीं यार भी अब नहीं
दर्द ही तो बचा और क्या रह गया
अक्स ओझल हुआ आँख से इस तरह
सामने बस मेरे आईना रह गया
रात भर इक नज़र से थी नज़रें मिली
पास आये मगर फासला रह गया
मिट गया प्यार दिल से बता क्या कहूँ
प्यार के नाम पर हादसा रह गया
एक अरसा हुआ तुमसे बिछड़े हुए
राह तकता तेरी हमनवां रह गया
याद करते रहो आप उसको धरम
बस यहाँ याद का सिलसिला रह गया।