"बिलखती हुई रात"
"बिलखती हुई रात"
वो सबसे छुप-छुप के मिलना
कुछ कदम यूं ही साथ चलना
कभी लड़ना,कभी झगड़ना
कभी रूठना,कभी मनाना
उस जन्नत सी जिंदगी का
आखिरी पड़ाव है
ये बिलखती हुई रात।
मैं प्रेग्नेट हूँ
ये काँपती हुई आवाज
तुम टेंशन ना लो
हम तुम्हारे पापा से बात करेंगे आज
इस सांत्वना भरी तस्सली का
आखिरी पड़ाव है
ये बिलखती हुई रात
अरे कम से कम मेरी इज्जत का तो ख्याल करती
नाम चाहे ना रोशन करती
पर यूं बदनाम तो ना करती
इससे अच्छा तो तू मेरा गला घोंट देती
इस बदनामी की बुलन्दियों का
आखिरी पड़ाव है
ये बिलखती हुई रात
ये रात आयी थी हर रोज की तरह
इस दौड़ती हुई दुनिया को कुछ पल सुकून देने
पर बदकिस्मती तो देखो इसकी
ये हिस्सेदार बन गयी उस मासूम के दर्द की
जिसे पनपने से पहले ही नोच दिया गया
छः महीने का वो भ्रूण जिन्दा था
साँसें चल रही थी उसकी
नन्हा सा दिल धड़क रहा था उसका
छोटी-छोटी आँखें खुल गयी
थी उसकी
जैसे ही किलकारी गूंजी
हॉस्पीटल की वो बेजान दीवारें मानो रो पड़ी
उस माँ को होश आता उससे पहले ही
उठ चुका था जनाजा उस जिन्दा कब्र का
हर शख्स शामिल था उस जनाजे में
सिवाय इस ठन्डी अँधेरी रात के
जो बीतना चाहती थी बिन बीते
पर अफसोस ये बड़ी होती जा रही थी
हर सख्स लिपटा था नींद के आगोश में
जब पहुंचा ये जनाजा उस गन्दी बस्ती में
पर कुछ पल में ही कोलाहल मचा दिया
इस मासूम की चीख ने
खामोशी के साये में लिपटी उस बस्ती में
कुछ सवाल उठे,कुछ अन्दाजे लगे
पता चला लड़का है
तो एक हल्की सी फुसफुसाहट हुई
अरे नाजायज़ होगा!!!!!
तभी हरकत हुई उस कचरे से सने बदन में
किसी ने डस्टबीन से बाहर निकाला उसे
पर अब साँसें थम गयी थी उसकी
धड़कन रुक गयी थी उसकी
इस शरीफ सी,शान्त सी, संस्कारी सी समझदार दुनिया ने मार दिया उसे
क्यूँकि वो नाजायज़ था ना..........