कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखें
कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखें
कुछ तुम लिखो,
कुछ हम लिखें,
ये चाय का प्याला,
खतम न हो जब तक!
ये मगरूर सुबह,
आशिक़ाना शाम न हो जाये,
तब तक!
ये बारिश,
भीग जाए खुद में ही,
ये हवाएँ,
सर्द मौसम-सा कपकपा न उठें,
जब तक!
ये वक्त थम-सा न जाए,
हमारे अनकहे लफ़्ज़ों की,
बारिश में,
ये पलकें पिघलें न,
तुम्हें देखकर,
तब तक!
ये सपना,
हकीकत न बन जाए,
मोहब्बत की इन्तहां का,
यूहीं नज़र,
नज़र को निहारती रहें,
जब तक!
जब तुम लिखना बंद करो,
शाम हो जाए,
ज़िन्दगी की,
ढल जाएँ हम संग-संग,
चलो लिखते हैं तब तक!