साल - दर - साल
साल - दर - साल
हर महीने
अपने पेट के निचले हिस्से में
वो किसी धड़कन के स्पंदन
की उम्मीद सँजोती है।
पर हर बार उसी निश्चित तारीख को
लाल रंग बन बह जाती हैं उम्मीदें
साल - दर - साल यूं ही...
हर साल
उसकी उम्मीद परवान चढ़ती है
धड़कन से उसके पेट का निचला हिस्सा
स्पंदित हो उठता है
पर जाने सोनोग्राफी में क्या देखती है ?
घोंट देती है वो, अपने ही हाथों
अपनी उम्मीद का गला
फिर अगली उम्मीद के इंतजार में
साल - दर - साल यूं ही...
हर बार
डॉक्टर ने बताया उसे
नामुमकिन है तुम्हारी उम्मीद पूरी होना
प्रकृति साथ नहीं है तुम्हारे
वो एक सुबह उठी,
और शाम को लौटी
एक बच्चे के साथ
इस तरह प्रकृति और समाज के मुंह पर
उसने जड़ दिया तमाचा
साल - दर - साल इंतज़ार नहीं किया उसने...!