स्त्री, शर्म और समाज
स्त्री, शर्म और समाज


शब्दकोश कहता है कि,
शर्म की बात है गलत कार्रवाई,
संकट की एक दर्दनाक भावना,
लेकिन क्या यह वास्तव में महिला की गलती है,
अगर वह एक छोटी पोशाक पहनना चाहती है ?
वह अकेली रात सड़कों से नहीं चल सकती,
उसके मन में यौन शोषण के डर के बिना,
खुद से डरते हुए सवाल पूछे बिना,
'क्या आज रात मेरे पीछे चलने वाला
आदमी मेरी गरिमा को चुराने वाला है ?'
अपने शरीर को ढकें, अपनी अखंडता को बचाएं,
अपने आप को रात में बाहर मत करो,
यह ढोंग है,
महिलाओं के लिए जीवन की यह स्थापना,
समाज का दोष है।
जब महिलाओं के साथ बलात्कार
और दुर्व्यवहार किया जाता है,
तो ज्यादातर समान रूप से
समाज की गलती होती है,
जैसे वह एक फूहड़ थी,
ध्यान रहे कि वह देवता नहीं रही होगी।
एक देवी वह अभी भी होती,
यदि समाज, आप महिलाओं पर कड़ाई से हावी नहीं थे,
एक देवी वह अभी भी होती,
यदि आप, समाज, अपने बेशर्म
पुरुषों को नियंत्रित कर रक्खा होता।
असंख्य बलात्कार होते हैं लेकिन
मामला हमेशा एक जैसा होता है।
अगर वे, वे पुरुष, उस समाज ने दबाव न डाला होता,
वह आज जिंदा होती,
यदि उन पुरुषों, उस समाज,
ने महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार किया होगा,
याद रहे, कि कुछ महिलाएँ उनकी माँ, बेटी और पत्नी भी थीं।
वे उसकी जान बचा सकते थे,
सभी महिलाओं को एक बेहतर जीवन दे सकते थे।