आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है।
समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता
झूठे समाज के लोग...। झूठे समाज के लोग...।
ऐसा कैसे कर लेते हो ! ऐसा कैसे कर लेते हो !
मेरी रूह ! मेरी रूह !
बेकार ही विवाद निकल आते हैं...! बेकार ही विवाद निकल आते हैं...!