एक डर
एक डर


क्या इतना कठिन है
औरत को औरत समझना
दो हाथ दो पाँव तुम्हारे जैसे ही
तो हैं उसके माशाअल्लाह
क्या इतना कठिन है
स्तनों के उभारों से
ऊपर उठकर सोचना
क्या इतना कठिन है
औरत को औरत समझना
इंसान की खाल पहनकर
भेड़ियों सी भूखी नजर लिये फिरते हो
क्या इतना कठिन है
इंसान बनकर जन्मने पर भी
इंसान बने रहना
क्या इतना कठिन है
औरत को औरत समझना
हवस के आगे भी दुनिया में बहुत कुछ है
कितने रिश्ते हैं यहाँ निभाने को स्त्री से तुम्हें
तुम्हारी माँ बहना मित्र प्रेमिका और पत्नी य
हाँ
फिर क्यों हर एक स्त्री के लिए बस
एक ही बात सोचना
क्या इतना कठिन है
अपनी सोच को सही रखना
क्या इतना कठिन है
औरत को औरत समझना
हर कदम पर बस एक डर
किसी अजनबी राक्षस से न हो सामना
चाहे फेसबुक पर हो कोई
फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकारना
या फिर काम से लौटते वक्त
देर रात होने पर सहमना
हर उठती निगाह पर शक करना
क्या इतना कठिन है इस सभ्य समाज में
एक सभ्य औरत का सफलता की ओर बढ़ना
बेखौफ होकर निडरता से जिंदगी बसर करना
क्या इतना कठिन है
औरत को औरत समझना।